Shahid Bhagat Singh Biography in Hindi

Bhagat Singh को कौन नहीं जानता है क्योंकि जब देश जब ब्रिटिश काल के अधीन था बहुत कम लोग ऐसे थे जिनमे Bhagat Singhजैसा साहस था। आजकल Bhagat Singh और देश के दूसरे क्रांतिकारी जो भी हुए है जिनकी वजह से आज हम अगर ब्रिटिश अधीन नहीं है के नाम पर राजनीति बड़े पैमाने पर होती है लेकिन उनके जीवन से प्रेरणा लेने के अलावा अगर हम दूसरा कोई भी स्वार्थ उनके नाम पर रखते है तो यह बेहद शर्मनाक बात है। Bhagat Singh उस समय के ऐसे क्रांतिकारी थे जो महात्मा गाँधी की विचारधारा के एकदम उलट यह मानते थे कि अगर हमे आजादी पानी है तो जिस भाषा में अंग्रेज काम करते है उसी भाषा में उनको जवाब देना होगा और वह आखिरी साँस तक यह करते रहे तो चलिए जानते है Bhagat Singh की जिन्दगी के बारे में कुछ और शानदार बातें आज के हमारे इस लेख shaheed bhagat singh biography in hindi में –

इस आर्टिकल में हम बताने वाले हैं। इसके माध्यम से हम Shaheed Bhagat Singh wiki, birthday, birth place, family, biography in hindi आदि की जानकारी देंगे।

Shaheed Bhagat Singh Biography in Hindi

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Bhagat Singh का जन्म हुआ था 27 सितम्बर 1907 को एक सिख परिवार में हुआ। इनके पिता का नाम सरदार किशन सिंह था और माता का नाम था विद्यावती कौर। हालाँकि जन्म से ही देश के लिए कुछ कर गुजरने की भावना रखने वाले Bhagat Singh की सोच पर जो मुख्य प्रभाव पड़ा था उसका कारण था जलियाँवाला बाग़ में हुआ वह भीषण हत्याकांड जिसकी वजह से उनके मन में अंग्रेजों के प्रति द्वेष भर गया। बड़े होते होते वह सोचने लगे कि किस तरह से इन अंग्रेजो से छुटकारा पाया जाए और इसके लिए उन्होंने लाहौर के नेशनल कॉलेज की अपनी पढाई छोड़कर “ नौजवान भारत सभा “ की स्थापना की ताकि अधिक से अधिक युवाओ को इस से जोड़कर देश के लिए कुछ किया जाए।

स्वतंत्रता के आन्दोलन में भागीदारी

हालाँकि Bhagat Singh रक्तपात के बिलकुल पक्षधर नहीं थे लेकिन जिन्दगी में कुछ चीजे ऐसी हुई जिनकी वजह से उन्होंने गांधीजी के असहयोग आन्दोलन के छिड़ने के बाद लगातार यह सोचते रहते थे कि कौनसा रास्ता है जो सही है। गांधीजी की अहिंसात्मक नीति या फिर क्रांतिकारी तरीका जिसमे अंग्रेजो के दमन की नीति की तरह ही उन्हें उन्ही की भाषा में जवाब दिया जाये। आपको पता हो तो जब जलियावाला बाग़ हत्याकांड हुआ था उस समय Bhagat Singh केवल 12 वर्ष की उम्र के थे। जैसे ही उन्हें इस रक्तपात की सूचना मिली वो तुरंत 11 किलोमीटर पैदल चल कर उस जगह पहुँच गये थे और इस हत्याकांड का उनके मन पर बहुत ही गहरा प्रभाव पड़ा था। आगे चलकर Bhagat Singh बहुत सी रैलियों और प्रदर्शनों में हिस्सा लेने लगे और बाद में जब किसी वजह से गांधीजी ने अपने असहयोग आन्दोलन को बंद कर दिया तो देश के तमाम युवा जो उसके सक्रिय हिस्सा थे उन लोगो में इसका एक नकारात्मक सन्देश गया और उनमे गुस्सा भर गया। Bhagat Singhभी उनमे से एक थे और अब उन्हें क्रांति के लिए हिंसा वाला मार्ग अनुचित नहीं लगने लगा था।

क्रांतिकारी गतिविधियाँ

Bhagat Singh की क्रन्तिकारी गतिविधियों में निम्न मुख्य है –

काकोरी काण्ड में क्रांतिकारियों को फांसी और कारावास दिए जाने के कारण Bhagat Singh ने अपनी पार्टी नौजवान भारत सभा का “ हिन्दुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसिएशन” में विलय कर दिया जो चन्द्रशेखर आजाद की पार्टी थी और उन्होंने उसे नया नाम दिया “हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन”।

Bhagat Singh ने 17 सितम्बर 1928 को ए० एस० पी० सॉण्डर्स जो कि एक अधिकारी था उसे Bhagat Singhने अपनी योजना के अनुसार राजगुरु , चन्द्रशेखर आजाद और जयगोपाल के साथ मिलकर हत्या करके लाला लाजपत राय की हत्या का प्रतिशोध लिया क्योंकि साइमन कमीशन के विरोध में हो रहे प्रदर्शन में लाला लाजपत राय की लाठीचार्ज में हत्या कर दी गयी थी।

8 अप्रेल 1929 को Bhagat Singh ने उस समय की ब्रिटिश संसद जो नयी दिल्ली में थी में बम फेंककर अपने विरोध को जताया। हालाँकि वो चाहते तो हमले की तरह इस घटना को अंजाम दे सकते थे लेकिन उन्होंने इसकी बजाय संसद की बीच की जगह जन्हा कोई नहीं था वंहा बम फेंककर अपने विरोध को जताया और भागने की बजाय गिरफ्तारी दे दी।

ब्रिटिश संसद भवन में बम फेंकने के लिए Bhagat Singh और बटुकेश्वर दत का नाम चुना गया था।

हालाँकि संसद में बम फेंकने के बाद इन पर जो आरोप थे उनके हिसाब से इन्हें आजीवन कारावास की सजा हुई थी लेकिन भगत सिंह , राजगुरु और सुखदेव के ऊपर सांडर्स को मारने के आरोपो को सही पाया गया जिसकी वजह से इन्हें फांसी की सजा दी गयी।

Bhagat Singh की फांसी

23 March 1931 को शाम को 7 बजकर 33 मिनट पर Bhagat Singhऔर उनके दो क्रांतिकारी सुखदेव और राजगुरु को फांसी की सजा दे दी गयी थी। बताया जाता है कि Bhagat Singhअपने आखिरी समय में क्रांतिकारी “ लेनिन “ की जीवनी पढ़ रहे रहे थे और ऐसे में जब उनसे उनकी आखिरी इच्छा के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा “ मुझे यह पूरी करनी है।” कुछ लोग यह जानकारी भी देते है कि उन्होंने यह भी कहा कि “ रुको अभी एक क्रांतिकारी दूसरे क्रान्तिकारी से मिल रहा है।” फांसी के बाद अंग्रेज अधिकारीयों ने सोचा कि कंही लोग भड़क नहीं जाए इस के डर से उन्होंने Bhagat Singh के शरीर के टुकड़े कर दिए और उन्हें बोरियों में भरकर फिरोजपुर की तरफ ले गये और मिटटी के तेल से जलाने की कोशिश की लेकिन लोगो को जब इस बारे में पता चला तो इसे बीच में छोड़कर वो सतलुज नदी में फेंककर भाग गये। इसके बाद लोगो ने इनके शरीर के अवशेषों को निकालकर विधि विधान से अंतिम संस्कार किया।

कहा जाता है कि Bhagat Singh जब पहली बार चन्द्रशेखर आजाद से मिले थे तो इन्होने उनके सामने जलती हुई मोमबत्ती पर हाथ रखकर यह कसम खायी थी कि उनकी आखिरी साँस तक वो देश के लिए कुर्बान होने के लिए समर्पित है। उन्होंने अपना यह वादा पूरा कर दिखाया।

अंतिम शब्द

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